ट्रिपल एस ओ न्यूज़, बीकानेर। न्यायालय विशिष्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट एन.आई. एक्ट, बीकानेर में चल रहे प्रकरण संख्या 3 प्रियंका बोहरा बनाम विद्यादेवी में शुक्रवार को न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। इस बहुचर्चित चेक बाउंस प्रकरण में पीठासीन अधिकारी ललित कुमार ने सभी पक्षों की दलीलों और साक्ष्यों का गहन परीक्षण करने के बाद विद्यादेवी को दोषमुक्त करार दिया।
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| चेक बाउंस प्रकरण में विद्यादेवी को मिली बड़ी राहत, विशिष्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट एन.आई. एक्ट न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला — एडवोकेट पवन कुमार स्वामी की ठोस पैरवी से हुआ न्याय |
यह मामला नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत दर्ज हुआ था। वादी पक्ष प्रियंका बोहरा ने आरोप लगाया था कि विद्यादेवी द्वारा उन्हें एक निर्धारित राशि का चेक दिया गया था, जो बैंक में प्रस्तुत करने पर अस्वीकृत (बाउंस) हो गया। इस पर वादी ने न्यायालय में वाद दायर कर कार्रवाई की मांग की।
वहीं, प्रतिवादी विद्यादेवी की ओर से प्रख्यात अधिवक्ता एडवोकेट पवन कुमार स्वामी ने पैरवी की। उन्होंने अपने गहन कानूनी अनुभव और तर्कों के माध्यम से अदालत के समक्ष यह सिद्ध किया कि चेक बाउंस होना मात्र अपने आप में अपराध नहीं है, जब तक कि इसमें किसी प्रकार की धोखाधड़ी, अनुचित लाभ या दुर्भावना का स्पष्ट प्रमाण न हो। उन्होंने यह भी दर्शाया कि चेक जारी करने के समय विद्यादेवी ने सभी वैधानिक और कानूनी प्रावधानों का पूर्ण पालन किया था तथा भुगतान से संबंधित विवाद बाद में उत्पन्न हुआ, जो एक सिविल विवाद की श्रेणी में आता है, न कि आपराधिक अपराध के अंतर्गत।
अदालत ने बचाव पक्ष के प्रस्तुत साक्ष्यों और दलीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि—
“जब तक यह प्रमाणित न हो कि चेक जानबूझकर गलत मंशा से जारी किया गया है, केवल उसके अनादरण से अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।”
पीठासीन अधिकारी ललित कुमार ने अपने विस्तृत निर्णय में यह भी उल्लेख किया कि ऐसे मामलों में न्यायालय को तथ्यों, परिस्थितियों और प्रस्तुत साक्ष्यों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना आवश्यक है ताकि निर्दोष व्यक्ति को अनुचित दंड न मिले।
निर्णय के बाद न्यायालय परिसर में मौजूद अधिवक्ता समुदाय और उपस्थित लोगों ने इसे न्याय की जीत बताया। एडवोकेट पवन कुमार स्वामी ने कहा कि यह फैसला न केवल उनकी मुवक्किल विद्यादेवी के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि यह उन सभी लोगों के लिए एक कानूनी मार्गदर्शक साबित होगा जो किसी तकनीकी कारणवश चेक बाउंस मामलों में फंस जाते हैं।
यह निर्णय न्यायिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है क्योंकि इससे यह स्पष्ट संदेश गया है कि—
“यदि व्यक्ति ने चेक जारी करते समय नियमानुसार कार्य किया है और उसके विरुद्ध कोई ठोस आपराधिक मंशा सिद्ध नहीं होती, तो उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता।”

