तीन पीढियां से रावण बन रहा है आहूजा परिवार

ट्रिपल एस ओ न्यूज़, बीकानेर। रामायण की बात करते हैं तो एक ऐसे  चरित्र की बात सामने आती है जिसकी विशाल काय शरीर व अटहास को देखकर हर कोई भयभीत हुए बिना नहीं रह सकता हर वर्ष देश भर में नवरात्र के दौरान होने वाली रामलीलाओं पर दशहरे उत्सव की झांकियां में रावण की भूमिका निभाने वाले कलाकार हर किसी के आकर्षण का केंद्र रहता है। बीकानेर में दशहरा महोत्सव के दौरान सजाई जाने वाली सजीव झांकिया में पीढ़ी दर पीढ़ी रावण की भूमिका निभाने वाले आहूजा परिवार ने न केवल रावण को  भूमिका को ऊंचाई में प्रदान की है बल्कि रावण परिवार के नाम से यह ख्याति अर्जित की है।

तीन पीढियां से रावण बन रहा है आहूजा परिवार
तीन पीढियां से रावण बन रहा है आहूजा परिवार

 आहूजा परिवार के सदस्य के कुमार आहूजा के अनुसार दशहरा महोत्सव के अवसर पर उनके परिवार का व्यक्ति रावण की भूमिका निभाते हैं। आहूजा के अनुसार उनके दादा स्वर्गीय माधव दास आहूजा ने रावण बनने के परंपरा परिवार में शुरू की उन्होंने वर्षों तक से  अब  और क्षमता बुलंद आवाज से माध्यम से न केवल भूमिका निभाई बल्कि शहर वासियों का भरपूर मनोरंजन किया।  दादाजी द्वारा लगातार रावण की भूमिका निभाई गई आहूजा परिवार के सदस्य एवं पूर्व आयकर अधिकारी शिवाजी ने उत्कृष्ट कला और अभिनय में बुलंद आवाज के लगातार 25 वर्ष तक रावण की भूमिका का निर्वाहं किया शिवाजी आहूजा ने अभिनय के साथ-साथ  पात्र अनुसार  हाव भाव से रावण की भूमिका को ऊंचाइयां प्रदान की। के कुमार आहूजा समय पिछले 23 वर्षों से दशहरे के  अवसर पर रावण की भूमिका निभाते आ रहे हैं और आहूजा परिवार के रावण परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। के कुमार आहुजा ने अपने कद काठी खतरनाक  अट हाश और हंसी के माध्यम से अलग पहचान बनाई है रावण से भयभीत रहने की छवि को भी बदलने की दिशा में के कुमार आहूजा प्रयास कर रहे हैं। 

रावण के बने के कुमार आहूजा  जहाँ जहां एक तरफ राम लक्ष्मण को युद्ध के लिए ललकारते हैं तो दूसरी तरफ बच्चों को ट्रॉफी बिस्किट वितरण भी करते हैं। आहूजा परिवार जिनको लोग रावण परिवार के नाम से भी जानते हैं आहूजा परिवार के सदस्य के कुमार आहूजा के धर्मपत्नी को मंदोदरी भाभी के नाम से भी पुकारते हैं।  यह उनके लिए  गर्व विषय है के कुमार आहूजा  रावण की भूमिका जहां एक और शहर वासियों को मनोरंजन करते नजर आएंगे वहीं दूसरी ओर आहूजा परिवार की संस्कृति में  परंपरा का एक और स्वर्णिम वर्ष जुड़ जाएगा।

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