यादवेन्द्र शर्मा का लेखन ही उनका जीवन था- बुलाकी शर्मा

ट्रिपल एस ओ न्यूज़ 15 जून , बीकानेर। अजित फाउण्डेशन द्वारा आयोजित ‘‘हथाई’’ कार्यक्रम के तहत सुप्रसिद्ध कथाकार एवं कवि यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ की कहानियों पर चर्चा आयोजित की गई।

यादवेन्द्र शर्मा का लेखन ही उनका जीवन था- बुलाकी शर्मा
यादवेन्द्र शर्मा का लेखन ही उनका जीवन था- बुलाकी शर्मा

कार्यक्रम की अध्यक्ष्यता करते हुए सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ का लेखन ही उनका जीवन था। लेखन हेतु अध्ययन, अनुभव एवं समर्पण होना जरूरी है। शर्मा ने चन्द्र के साथ रहने के कई अनुभव सुनाते हुए कहा कि चन्द्र जी हमेशा कहते थे कि ‘‘ मैं अपने पात्रों के माध्यम से अमर रहूंगा।’’ चन्द्र जी से पहली मुलाकात 1976-77 में हू तब से लेकर अन्तिम दिनों पर उनके सम्पर्क में रहने का मौका मिला। यादवेन्द्र शर्मा साहित्यक रचना सुबह के समय करते तथा पोस्टकार्ड के माध्यम से साहित्यकारों एवं अन्य रचनाकारों से जुड़े रहते। उनके उपन्यासों का पाठक इंतजार करते थे, ऐसे विरले साहित्यकार हमें बहुत कम देखने को मिलते हैं।

संस्था समन्वयक संजय श्रीमाली ने यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र की दो कहानियों पर अपनी बात रखी। श्रीमाली ने चन्द्र जी की ‘‘गुलजी गाथा’’ पर अपनी बात रखते हुए कहा कि यह कहानी निस्थार्व एवं निस्पाप पर आधारित प्रेम कथा है जिसमें कहीं भी हमें छिछोरापन नहीं देखने को मिलता है। जहां हम गुलजी को रिष्तेदारों के नाम बताने वाले व्यक्ति के रूप में याद करते है वहीं उनकी प्रेमगाथा भी बहुत मार्मिक है। इसी क्रम में यादवेन्द्र जी की ऐतिहासिक कथाओं में से ‘‘सुलतान भैया’’ पर संजय श्रीमाली ने अपनी टिपप्णी देते हुए कहा कि यह कहानी हिन्दू-मुस्लिम आपसी सौहार्द एवं सामंजस्य को कायम रखने का सर्वोच्च उदाहरण प्रस्तुत करती है। कहानी में मर्यादित सुलतान ब्राहमण कन्या की शपथ को पूरा करने हेतु उदाहरण प्रस्तुत करता है, वह अनुकरणीय है। युवा पीढ़ियों को इस प्रकार की कहानियों को पढ़ना चाहिए।

इसी क्रम में मोहम्मद फारूक ने उनके उपन्यास ‘‘आदमी वैशाखी पर’’ पर अपनी बात रखते हुए कहा कि इस उपन्यास में समाज के विभिन्न पक्षों को उकेरा है वहीं व्यक्ति का स्वभाव एवं नैतिक मूल्यों पर कुठाराघात करते हुए नजर आता है।

युवा कवि आनन्द छंगाणी ने यादवेन्द्र शर्मा की ‘‘दूध का कर्ज’’ पर अपनी बात रखते हुए कहा कि यह कहानी मुगलकाल से प्रेरित ऐतिहासिक कहानी है।

डॉ. कृष्णा आचार्य ने कहा कि यादवेन्द्र शर्मा के लेखन की सोच बहुत विस्तृत थी। वह मनोवैज्ञानिक ढंग से सोचते और लिखते थे तथा अपने आस-पास के चरित्रों पर केन्द्रित कहानी लिखतेे थे।

यादवेन्द्र शर्मा के पोते दिलीप बिस्सा ने अपने दादा के अनछुए पहलुओं को बताते हुए कहा कि चन्द्र जी को कहानी लेखन हेतु अपनी बड़ी बहन नंदा देवी आचार्य से प्रेरणा मिली तथा उनको पंतगों का बहुत शौक था। उनकी लेखनी कालजयी है जो सदैव जीवंत रहेगी।

शांतिप्रसाद बिस्सा ने चन्द्र के बारे में बताते हुए कहा कि वह समय से आगे चलते थे। उनके उपन्यास पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध थे। बिस्सा से संस्मरण सुनाते हुए बताया कि यादवेन्द्र शर्मा खाने-पीने के भी शौकिन थे।

युवा चित्रकार योगेन्द्र पुरोहित ने कहा कि उनको लिखने की प्रेरणा यादवेन्द्र शर्मा से ही मिली है तथा उनके पारिवारिक संबंध भी रहे हैं।

महेन्द्र व्यास ने बताया कि यादवेन्द्र शर्मा ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने आजीवन लेखनी से कमाया तथा परिवार का लालन-पालन किया।

गोविन्द जोशी ने कहा कि यादवेन्द्र शर्मा समयबद्ध जीवन शैली के व्यक्तित्व थे। उन्होंने हमें संयमिता से अपने जीवन को जीया।

कार्यक्रम के अंत में गिरीराज पारीक ने आगुन्तुकों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि ऐसे आयोजनों से युवा पीढ़ि में पढ़ने लिखने के प्रेरणा मिलती है। जोकि बहुत ही महत्ती का कार्य है।

कार्यक्रम में रामगोपाल व्यास, इसरार हसन कादरी, अंकित बिस्सा, जाकिर अदिब, महेश व्यास, प्रषान्त, सुनिता श्रीमाली, रेखा बिस्सा, चित्रा बिस्सा, वैभव, समृद्धि, मनोज श्रीमाली, गौरीशंकार शर्मा उपस्थित रहे।

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