जूनागढ़ परिसर में वीर जगराम जी के स्मारक पर पूजा अर्चना व महाप्रसादी

ट्रिपल एस ओ न्यूज़, बीकानेर 26 जून 2025 वार गुरुवार राजपुरोहित समाज के वीर सेनापति श्री जगराम जी की पुण्यतिथि पर उनके वंशज राजपुरोहित बंधुओ द्वारा जूनागढ़ परिसर में स्थित उनके स्मारक स्थल पर पूजा अर्चना हवन इत्यादि कर उन्हें याद किया गया। भजन कीर्तन आदि का आयोजन किया गया और महाप्रसादी के रूप में समाज के पुरुषों महिला बच्चों ने भंडारे के रूप में प्रसाद का ग्रहण किया। वीर जगराम जी सेवा समिति जूनागढ़ के नवल किशोर राजपुरोहित देसलसर ने बताया कि उनके स्मारक स्थल पर सुबह 9:00 बजे हवन पूजा पाठ एवं आरती कर्मकांड पंडितो के सानिध्य में किया गया आरती के पश्चात सुबह 11:00 बजे से महाप्रसादी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में बीकानेर के गण मान्य लोग एवं राजपुरोहित समाज के लोग उपस्थित रहे।

जूनागढ़ परिसर में वीर जगराम जी के स्मारक पर पूजा अर्चना व महाप्रसादी
जूनागढ़ परिसर में वीर जगराम जी के स्मारक पर पूजा अर्चना व महाप्रसादी


 जगराम जी का जीवन परिचय


बीकानेर महाराजा श्री जोरावर सिंह के प्रधान सलाहकार एवं बहादुर घुड़सवार देसलसर निवासी श्रीमान् हरभाव सिंह जी के घर पर सम्वत् 1775 में एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ। हरभाव सिंह जी ने अपने पुत्र का नाम रखा जगराम। जगराम बचपन से ही युद्ध कौशल एवं घुड़‌सवारी में रुचि रखते है और निरन्तर अभ्यास से एक कुशल सेनापति बनने का पुर्ण प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया था। फलतः मात्र 22 वर्ष की अल्पायु में ही महाराजा जोरावर सिंह ने राजपुरोहित जगराम जी को अपना प्रधान सेनापति नियुक्त कर दिया। सम्वत् 1797 में जोधपुर रियासत के महाराजा श्री अभय सिंह ने बीकानेर के ही विद्रोही सरदारों के साथ मिलकर बीकानेर पर आक्रमण कर दिया। नगर में भंयकर लूटपाट की और जुनागढ़ की चारों तरफ मोर्चाबन्दी कर दी। महाराजा श्री जोरावर सिंह एवं कुंवर श्री गज सिंह अपनी सेना के साथ किले के अन्दर ही थे। ऐसी स्थिति देखकर वीर सेनापति एवं रणबांकुरे राजपुरोहित जगराम जी से रहा नहीं गया। उन्होंने निश्चय कर लिया कि अपनी स्वामीभक्ति, वीरता एवं रणकौशल दिखाने का इससे अच्छा अवसर नहीं मिल सकता। वीर जगराम जी महाराजा श्री जोरावर सिंह जी की आज्ञा प्राप्त करके अपने विश्वस्त सैनिकों के साथ होली की शाम को अचानक शत्रु पर टूट पड़े। प्रहार इतना भीषण था कि शत्रु की सेना अचंभित रह गई, चारों और हाहाकार मच गया। शत्रु को प्रतिरोध का भी अवसर नहीं मिला, सेना को विवश होकर भागना पड़ा। वीर योद्धा जगराम जी ने नागौर तक शत्रु का पीछा किया स्वयं लहुलुहान हो गये, शरीर छलनी हो गया लेकिन हिम्मत नहीं हारी और विजय श्री का सन्देश देने बीकानेर महाराजा के पास पहुंचे। सम्वत् 1797 आषाढ़ शुक्ला एकं गुरुवार का दिना था। महाराजा को विजय श्री वरण करने का शुभ संदेश देकर वीर सेनापति ने अपने सैन्य धर्म का पालन करते हुए अपनी नश्वर देह को त्याग दिया। महाराजा ने इस अमर सपूत के सम्मान में जूनागढ़ में एक स्मारक बनवाया और जगराम जी के सुपुत्र देवकरण जी को रासीसर गांव की जागीर प्रदान की। वीर जगराम जी के वंशज राजपुरोहित बन्धु आज भी इनकी पूजा अर्चना करते है। गुरूवार का दिन विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसी दिन वीर गति को प्राप्त हुए थे।

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